होली की हार्दिक बधाई ....सब पदाकुओ को...
हिकमत
'तुख़्म-ए-तासीर सोहबत का असर'। इस मुहावरे को सार्थक होता देख मैने फ़ैसला किया है कि अच्छे घर
वालो की सोहबत ही भली है, फ़िर वह बंगला न भी हो तो कोई बात नही। और फिर बुज़ुर्गो और दाना
लोगो के घरो की छतो का माहौल भी शालीन होता है। फ़िज़ा ने पहले तो नाटक किया कि बंगला नही
छोड़ेगी,जब दाल नही गली तो बोली, "सोच लेते है थोड़े दिन गाँव ही रहकर आये।" संयोग से हकीम साहब
का मकान भी बंगले नुमा ही निकला। छत पर लट्टु घुमाये जाने और पतंगे चगाये जाने के आसार भी
मिले। मतलब यहाँ फ़ुल-टाईम आँकुपेशन की संभावना निरस्त्। ख़ैर, जबतक, जितने दिन 'दाना-पानी'
है;रह लेंगे।
निराश नही होना पड़ा। हकीमसाब का घर हिकमत से खाली कैसे हो सकता था। पतरे की एक पेटी में एक
किताब हाथ लगी [शायद हकीम साहब की ही ब्याज़ हो]। अशाआर और मज़ामीन का ख़ज़ाना निकला,
मगर 'दीमकज़दा'। अहिंसक तरीके से दीमक से छुट्कारा पाने के लिये पेटी छत पर धूप में रख दी गयी
लगती है। के, शाकिर नाम से लिखी इस डायरीनुमा किताब की पहली रचना ही बड़ी 'धांसू' निकली। ग्यारह
शे'रो में हिकमत ही हिकमत मिली; पेशे ख़िदमत है:-
जहाँ तक काम चलता हो ग़िज़ा से,
वहाँ तक चाहिये बचना दवा से।
अगर तुझको लगे जाड़े में सर्दी,
तो इस्तेअमाल कर अण्डे की ज़र्दी।
जो हो मह्सूस मे'दे में गिरानी,
तो पीले सौंफ़ या अदरक का पानी।
अगर ख़ूँ कम बने बल्ग़म ज़्यादा,
तो खा गाजर,चने,शल्जम ज़्यादा।
जो बदहज़मी में तू चाहे इफ़ाक़ा*,
तो कर ले एक या दो वक्त फ़ाक़ा।*
जो हो 'पैचिस' तो पेट इस तरह कस ले,
मिला कर दूध में लीमूं का रस ले।
जिगर के बल पे है इन्सान जीता,
अगर ज़ोअफ़े* जिगर है खा पपीता।
जिगर में हो अगर गर्मी दही खा,
अगर आंतो में हो ख़ुश्की तो घी खा।
थकन से हो अगर अज़लात* ढीले,
तो फ़ौरन दूध गर्मागर्म पीले।
जो ताकत में कमी होती हो महसूस,
तो फिर मुलतानी-मिस्री की डली चूस्।
ज़्यादा गर दिमाग़ी हो तैरा काम,
तो खाया कर मिला कर शहद-ओ-बादाम्।
अरे! अरे…… ये क्या है?…क्यां थोंसे जा रही हो मैरे मुंह में।
फ़िज़ा: "कुछ नही राजा , बादाम है, आजकल तुम दिमाग़ से बहुत काम ले रहे हो, खालो, कल शहद भी ला दुंगी।"
पता नही, बादाम कितनी महंगी पड़ेगी, मैने मन में सोचा, बोला नही कि उसका भ्रम न टूटे।
*इफ़ाक़ा= फ़ायदा, फ़ाक़ा=उपवास, ज़ोअफ़े जिगर= जिगर की कमज़ोरी, अज़लात= अव्यव्।
बड़े शानदार नुस्खे निकाल कर लाए हैं, लगता है सब अचूक हैं और हकीम साहब के आजमाए हैं। जरा होली पर भी कुछ हो जाए अनोखा सा।
जवाब देंहटाएंपहली बार ब्लाग देखा तो अपने पिता जी की याद आ गयी वो भी इस इलाके के बहुत अच्छे हकीम थे तिबिया कालेज लाहौर के विद्द्यार्थी थे। गज़ल मे सेहत के नुस्खे बहुत अच्छी लगे । धन्यवाद आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंkya baat hai...laajavab
जवाब देंहटाएंबहुत नायाब नुस्ख़े हैं, मैं एक कॉपी कर के रख ले रहा हूँ, उम्मीद है कि कॉपीराइट के तहत परमीशन दे देंगे आप ज़ाती इस्तेमाल के लिए। शुक्रिया।
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